Skandapurāṇa Adhyāya 12 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0120010: सनत्कुमार उवाच| SP0120011: ततः स भगवान्देवो ब्रह्मा तामाह सुस्वरम्| SP0120012: देवि येनैव सृष्टासि मनसा यस्त्वया वृतः| SP0120013: स भर्ता तव देवेशो भविता मा तपः कृथाः|| १|| SP0120021: ततः प्रदक्षिणं कृत्वा ब्रह्मा व्यास गिरेः सुताम्| SP0120022: जगामादर्शनं तस्याः सा चापि विरराम ह|| २|| SP0120031: सा देवी युक्तमित्येवमुक्त्वा स्वस्याश्रमस्य ह| SP0120032: द्वारि जातमशोकं वै समुपाश्रित्य संस्थिता|| ३|| SP0120041: अथागाच्चन्द्रतिलकस्त्रिदशार्तिहरो हरः| SP0120042: विकृतं रूपमास्थाय ह्रस्वो बाहुक एव च|| ४|| SP0120051: विभुग्ननासिको भूत्वा कुब्जः केशान्तपिङ्गलः| SP0120052: उवाच विकृतास्यश्च देवि त्वां वरयाम्यहम्|| ५|| SP0120061: अथोमा योगसंसिद्धा ज्ञात्वा शंकरमागतम्| SP0120062: अन्तर्भावविशुद्धा सा क्रियानुष्ठानलिप्सया|| ६|| SP0120071: तमुवाचार्घ्यमानाय्य मधुपर्केण चैव हि| SP0120072: सम्पूज्य ससुखासीनं ब्राह्मणं ब्राह्मणप्रिया|| ७|| SP0120080: देव्युवाच| SP0120081: भगवन्नस्वतन्त्रास्मि पिता मे ऽस्त्यरणी तथा| SP0120082: तौ प्रभू मम दाने वै कन्याहं द्विजपुंगव|| ८|| SP0120091: गत्वा याचस्व पितरं मम शैलेन्द्रमव्ययम्| SP0120092: स चेद्ददाति मां विप्र तुभ्यं तद्रुचितं मम|| ९|| SP0120100: सनत्कुमार उवाच| SP0120101: ततः स भगवान्देवस्तथैव विकृतः प्रभुः| SP0120102: उवाच शैलराजं तमुमां मे यच्छ शैलराट्|| १०|| SP0120111: स तं विकृतरूपेण ज्ञात्वा रुद्रमथाव्ययम्| SP0120112: भीतः शापाच्च विमना इदं वचनमब्रवीत्|| ११|| SP0120121: भगवन्नावमन्यामि ब्राह्मणान्भूमिदैवतान्| SP0120122: मनीषितं तु यत्पूर्वं तच्छृणुष्व महातपः|| १२|| SP0120131: स्वयंवरो मे दुहितुर्भविता विप्रपूजितः| SP0120132: वरयेद्यं स्वयं तत्र स भर्तास्या भवेदिति|| १३|| SP0120140: सनत्कुमार उवाच| SP0120141: तच्छ्रुत्वा शैलवचनं भगवान्गोवृषध्वजः| SP0120142: देव्याः समीपमागत्य इदमाह महामनाः|| १४|| SP0120151: देवि पित्रा तवाज्ञप्तः स्वयंवर इति श्रुतम्| SP0120152: तत्र त्वं वरयित्री यं स ते भर्ता किलानघे|| १५|| SP0120161: तदापृच्छे गमिष्यामि दुर्लभा त्वं वरानने| SP0120162: रूपवन्तं समुत्सृज्य वृणीथा मादृशं कथम्|| १६|| SP0120170: सनत्कुमार उवाच| SP0120171: तेनोक्ता सा तदा तत्र भावयन्ती तदीरितम्| SP0120172: भावं च रुद्रनिहितं प्रसादं मनसस्तथा|| १७|| SP0120181: सम्प्राप्योवाच देवेशं मा ते भूद्बुद्धिरन्यथा| SP0120182: अहं त्वां वरयिष्यामि नान्यद्भूतं कथंचन|| १८|| SP0120191: अथ वा ते ऽस्ति संदेहो मयि विप्र कथंचन| SP0120192: इहैव त्वां महाभाग वरयामि मनोरथम्|| १९|| SP0120200: सनत्कुमार उवाच| SP0120201: गृहीत्वा स्तबकं सा तु हस्ताभ्यां तत्र संस्थितम्| SP0120202: स्कन्धे शम्भोः समादाय देवी प्राह वृतो ऽसि मे|| २०|| SP0120211: ततः स भगवान्देवस्तथा देव्या वृतस्तदा| SP0120212: उवाच तमशोकं वै वाचा संजीवयन्निव|| २१|| SP0120221: यस्मात्तव सुपुष्पेण स्तबकेन वृतो ह्यहम्| SP0120222: तस्मात्त्वं जरया त्यक्तः अमरः सम्भविष्यसि|| २२|| SP0120231: कामरूपः कामपुष्पः कामगो दयितो मम| SP0120232: सर्वाभरणपुष्पाढ्यः सर्ववृक्षफलोपगः|| २३|| SP0120241: सर्वान्नभक्षदश्चैव अमृतस्रव एव च| SP0120242: सर्वगन्धश्च देव्यास्त्वं भविष्यसि दृढं प्रियः| SP0120243: निर्भयः सर्वलोकेषु चरिष्यसि सुनिर्वृतः|| २४|| SP0120251: आश्रमं चैवमत्यर्थं चित्रकूटेति विश्रुतम्| SP0120252: यो ऽभियास्यति पुण्यार्थी सो ऽश्वमेधमवाप्स्यति| SP0120253: यत्र तत्र मृतश्चापि ब्रह्मलोकं गमिष्यति|| २५|| SP0120261: यश्चात्र नियमैर्युक्तः प्राणान्सम्यक्परित्यजेत्| SP0120262: स देव्यास्तपसा युक्तो महागणपतिर्भवेत्|| २६|| SP0120270: सनत्कुमार उवाच| SP0120271: एवमुक्त्वा तदा देव आपृच्छ्य हिमवत्सुताम्| SP0120272: अन्तर्दधे जगत्स्रष्टा सर्वभूतप ईश्वरः|| २७|| SP0120281: सापि देवी गते तस्मिन्भगवत्यमितात्मनि| SP0120282: तत एवोन्मुखी स्थित्वा शिलायां संविवेश ह|| २८|| SP0120291: उन्मुखी सा गते तस्मिन्महेष्वासे प्रजापतौ| SP0120292: निशेव चन्द्ररहिता सा बभौ विमनास्तदा|| २९|| SP0120301: अथ शुश्राव सा शब्दं बालस्यार्तस्य शैलजा| SP0120302: सरस्युदकसम्पूर्णे समीपे चाश्रमस्य ह|| ३०|| SP0120311: स कृत्वा बालरूपं तु देवदेवः स्वयं शिवः| SP0120312: क्रीडाहेतोः सरोमध्ये ग्राहग्रस्तो ऽभवत्तदा|| ३१|| SP0120321: योगमायामथास्थाय प्रपञ्चोद्भवकारणम्| SP0120322: तद्रूपं सरसो मध्ये कृत्वेदं समभाषत| SP0120323: त्रातु मां कश्चिदेत्येह ग्राहेण हृतचेतसम्|| ३२|| SP0120331: धिक्कष्टं बाल एवाहमप्राप्तार्थमनोरथः| SP0120332: यास्यामि निधनं वक्त्रे ग्राहस्यास्य दुरात्मनः|| ३३|| SP0120341: शोचामि न स्वकं देहं ग्राहग्रस्तो ऽपि दुःखितः| SP0120342: यथा शोचामि पितरं मातरं च तपस्विनीम्|| ३४|| SP0120351: मां श्रुत्वा ग्राहवदने प्राप्तं निधनमुत्सुकौ| SP0120352: प्रियपुत्रावेकपुत्रौ प्राणान्नूनं विहास्यतः|| ३५|| SP0120360: सनत्कुमार उवाच| SP0120361: श्रुत्वा तु देवी तं नादं विप्रस्यार्तस्य शोभना| SP0120362: उत्थाय प्रद्रुता तत्र यत्र तिष्ठत्यसौ द्विजः|| ३६|| SP0120371: सापश्यदिन्दुवदना बालकं चारुरूपिणम्| SP0120372: ग्राहेण ग्रस्यमानं तं वेपमानमवस्थितम्|| ३७|| SP0120381: सो ऽपि ग्राहवरः श्रीमान्दृष्ट्वा देवीमुपागताम्| SP0120382: तं गृहीत्वा द्रुतं यातो मध्यं सरस एव ह|| ३८|| SP0120391: स कृष्यमाणस्तेजस्वी नादमार्तं तदाकरोत्| SP0120392: अथाह देवी दुःखार्ता बालं दृष्ट्वा महाव्रता|| ३९|| SP0120401: ग्राहराज महासत्त्व बालकं ह्येकपुत्रकम्| SP0120402: विसृजैनं महादंष्ट्र क्षिप्रं भीमपराक्रम|| ४०|| SP0120410: ग्राह उवाच| SP0120411: यो देवि दिवसे षष्ठे प्रथमं समुपैति माम्| SP0120412: स आहारो मम पुरा विहितो लोककर्तृभिः|| ४१|| SP0120421: सो ऽयं मम महाभागे षष्ठे ऽहनि गिरीन्द्रजे| SP0120422: ब्रह्मणा विहितो नूनं नैनं मोक्ष्ये कथंचन|| ४२|| SP0120430: देव्युवाच| SP0120431: यन्मया हिमवच्छृङ्गे चरितं तप उत्तमम्| SP0120432: तेन बालमिमं मुञ्च ग्राहराज नमो ऽस्तु ते|| ४३|| SP0120440: ग्राह उवाच| SP0120441: मा व्ययं तपसो देवि कार्षीः शैलेन्द्रनन्दने| SP0120442: नैनं मोचयितुं शक्तो देवराजो ऽपि स स्वयम्|| ४४|| SP0120451: मह्यमीशेन तुष्टेन शर्वेणोग्रेण शूलिना| SP0120452: अमरत्वमवध्यत्वमक्षयं बलमेव च|| ४५|| SP0120461: स्वयंग्रहणमोक्षश्च ज्ञानं चैवाव्ययं पुनः| SP0120462: दत्तं ततो ब्रवीमि त्वां नायं मोक्षमवाप्स्यति|| ४६|| SP0120471: अथ वा ते कृपा देवि भृशं बाले शुभानने| SP0120472: ब्रवीमि यत्कुरु तथा ततो मोक्षमवाप्स्यति|| ४७|| SP0120480: देव्युवाच| SP0120481: ग्राहाधिप वदस्वाशु यत्सतामविगर्हितम्| SP0120482: तत्कृतं नात्र संदेहो मान्या मे ब्राह्मणा दृढम्|| ४८|| SP0120490: ग्राह उवाच| SP0120491: यत्कृतं वै तपः किंचिद्भवत्या स्वल्पमन्तशः| SP0120492: तत्सर्वं मे प्रयच्छस्व ततो मोक्षमवाप्स्यति|| ४९|| SP0120500: देव्युवाच| SP0120501: जन्मप्रभृति यत्पुण्यं महाग्राह कृतं मया| SP0120502: तत्ते सर्वं मया दत्तं बालं मुञ्च ममाग्रतः|| ५०|| SP0120510: सनत्कुमार उवाच| SP0120511: प्रजज्वाल ततो ग्राहस्तपसा तेन बृंहितः| SP0120512: आदित्य इव मध्याह्ने दुर्निरीक्ष्यस्तदाभवत्|| ५१|| SP0120521: उवाच चेदं तुष्टात्मा देवीं लोकस्य धारिणीम्| SP0120522: देवि किं कृतमेतत्ते अनिश्चित्य महाव्रते| SP0120523: तपसो ह्यर्जनं दुःखं तस्य त्यागो न शस्यते|| ५२|| SP0120531: गृहाण तप एतच्च बालं चेमं शुचिस्मिते| SP0120532: तुष्टो ऽस्मि ते विप्रभक्त्या वरं तस्माद्ददामि ते|| ५३|| SP0120541: सा त्वेवमुक्ता ग्राहेण उवाचेदं महाव्रता| SP0120542: सुनिश्चित्य महाग्राह कृतं बालस्य मोक्षणम्| SP0120543: न विप्रेभ्यस्तपः श्रेष्ठं श्रेष्ठा मे ब्राह्मणा मताः|| ५४|| SP0120551: दत्त्वा चाहं न गृह्णामि ग्राहेन्द्र विदितं हि ते| SP0120552: न हि कश्चिन्नरो ग्राह प्रदत्तं पुनराहरेत्|| ५५|| SP0120561: दत्तमेतन्मया तुभ्यं नाददानि हि तत्पुनः| SP0120562: त्वय्येव रमतामेतद्बालश्चायं विमुच्यताम्|| ५६|| SP0120571: तथोक्तस्तां प्रशस्याथ मुक्त्वा बालं नमस्य च| SP0120572: देवीमादित्यसद्भासं तत्रैवान्तरधीयत|| ५७|| SP0120581: बालो ऽपि सरसस्तीरे मुक्तो ग्राहेण वै तदा| SP0120582: स्वप्नलब्ध इवार्थौघस्तत्रैवान्तरधीयत|| ५८|| SP0120591: तपसो ऽथ व्ययं मत्वा देवी हिमगिरीन्द्रजा| SP0120592: भूय एव तपः कर्तुमारेभे यत्नमास्थिता|| ५९|| SP0120601: कर्तुकामां तपो भूयो ज्ञात्वा तां शंकरः स्वयम्| SP0120602: प्रोवाच वचनं व्यास मा कृथास्तप इत्युत|| ६०|| SP0120611: मह्यमेतत्तपो देवि त्वया दत्तं महाव्रते| SP0120612: तेनैवमक्षयं तुभ्यं भविष्यति सहस्रधा|| ६१|| SP0120621: इति लब्ध्वा वरं देवी तपसो ऽक्षय्यमुत्तमम्| SP0120622: स्वयंवरमुदीक्षन्ती तस्थौ प्रीतिमुदायुता|| ६२|| SP0120631: इदं पठेद्यो हि नरः सदैव बालानुभावाचरणं हि शम्भोः| SP0120632: स देहभेदं समवाप्य पूतो भवेद्गणस्तस्य कुमारतुल्यः|| ६३|| SP0129999: इति स्कन्दपुराणे द्वादशमो ऽध्यायः||