Skandapurāṇa Adhyāya 15 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0150010: सनत्कुमार उवाच| SP0150011: प्रविष्टे भवनं देवे सूपविष्टे वरासने| SP0150012: स बहिर्मन्मथः क्रूरो देवं वेद्धुमनाभवत्|| १|| SP0150021: तमनाचारसंयुक्तं दुरात्मानं कुलाधमम्| SP0150022: लोकान्सर्वांस्तापयानं सर्वेष्वकरुणात्मकम्|| २|| SP0150031: ऋषीणां विघ्नकर्तारं नियमानां व्रतैः सह| SP0150032: चक्राह्वयस्य रूपेण रत्या सह तमागतम्|| ३|| SP0150041: अथाततायिनं व्यास वेद्धुकामं सुरेश्वरम्| SP0150042: नयनेन तृतीयेन सावज्ञं तमवैक्षत|| ४|| SP0150051: ततो ऽस्य नेत्रजो वह्निर्ज्वालामालासहस्रवान्| SP0150052: संवृत्य रतिभर्तारमदहत्सपरिच्छदम्|| ५|| SP0150061: स दह्यमानः करुणमार्तो ऽक्रोशत विस्वरम्| SP0150062: प्रसादयंश्च तं देवं पपात स महीतले|| ६|| SP0150071: आशु सो ऽग्निपरीताङ्गो मन्मथो लोकतापनः| SP0150072: पपात भस्मसाच्चैव क्षणेन समपद्यत|| ७|| SP0150081: पत्नी तु करुणं तस्य विललाप सुदुःखिता| SP0150082: देवं देवीं च दुःखार्ता अयाचत्करुणायती|| ८|| SP0150091: तस्याश्च करुणां श्रुत्वा देवौ तौ करुणात्मकौ| SP0150092: ऊचतुस्तां समालोक्य समाश्वास्य च दुःखिताम्|| ९|| SP0150101: दग्ध एष ध्रुवं भद्रे नास्योत्पत्तिरिहेष्यते| SP0150102: अशरीरो ऽपि ते काले कार्यं सर्वं करिष्यति|| १०|| SP0150111: यदा तु विष्णुर्भविता वसुदेवसुतः शुभे| SP0150112: तदा तस्य सुतो ऽयं स्यात्पतिस्ते स भविष्यति|| ११|| SP0150120: सनत्कुमार उवाच| SP0150121: ततः सा तं वरं लब्ध्वा कामपत्नी शुभानना| SP0150122: जगामेष्टं तदा देशं प्रीतियुक्ता गतक्लमा|| १२|| SP0150130: सनत्कुमार उवाच| SP0150131: एवं दग्ध्वा स कामं तु शंकरो मूढचेतसम्| SP0150132: प्रोवाच हिमवत्पुत्रीं भक्त्या मुनिवरस्य ह|| १३|| SP0150141: वसिष्ठो नाम विप्रेन्द्रो मां कृत्वा हृदि तप्यते| SP0150142: तस्याहं वरदानाय प्रयास्यामि महाव्रते|| १४|| SP0150151: एवमुक्त्वा स देवीं तु भक्तिप्रीत्या तदा विभुः| SP0150152: जगाम तप्यतो ऽभ्याशं वसिष्ठस्य मुनेर्विभुः|| १५|| SP0150161: ततो मुनिवरश्रेष्ठं वरिष्ठं तपतां वरम्| SP0150162: वसिष्ठमृषिशार्दूलं तप्यमानं परं तपः|| १६|| SP0150171: पूर्णे वर्षसहस्रे तु ज्वलमानमिवानलम्| SP0150172: उवाच भगवान्गत्वा ब्रूहि किं ते ददानि ते| SP0150173: ददामि दिव्यं चक्षुस्ते पश्य मां सगणं द्विज|| १७|| SP0150181: दृष्ट्वा स तु तमीशानं प्रणम्य शिरसा प्रभुम्| SP0150182: शिरस्यञ्जलिमाधाय तुष्टाव हृषिताननः|| १८|| SP0150190: वसिष्ठ उवाच| SP0150191: नमः कनकलिङ्गाय वेदलिङ्गाय वै नमः| SP0150192: नमः सहस्रलिङ्गाय वह्निलिङ्गाय वै नमः|| १९|| SP0150201: नमः पुराणलिङ्गाय श्रुतिलिङ्गाय वै नमः| SP0150202: नमः पवनलिङ्गाय ब्रह्मलिङ्गाय वै नमः|| २०|| SP0150211: नमस्त्रैलोक्यलिङ्गाय दाहलिङ्गाय वै नमः| SP0150212: नमः पर्वतलिङ्गाय स्थितिलिङ्गाय वै नमः|| २१|| SP0150221: नमो रहस्यलिङ्गाय सप्तद्वीपोर्ध्वलिङ्गिने| SP0150222: नमः सर्वार्थलिङ्गाय सर्वलोकाङ्गलिङ्गिने|| २२|| SP0150231: नमो ऽस्त्वव्यक्तलिङ्गाय बुद्धिलिङ्गाय वै नमः| SP0150232: नमो ऽहंकारलिङ्गाय भूतलिङ्गाय वै नमः|| २३|| SP0150241: नम इन्द्रियलिङ्गाय नमस्तन्मात्रलिङ्गिने| SP0150242: नमः पुरुषलिङ्गाय भावलिङ्गाय वै नमः|| २४|| SP0150251: नमः सर्वार्थलिङ्गाय तमोलिङ्गाय वै नमः| SP0150252: नमो रजोर्ध्वलिङ्गाय सत्त्वलिङ्गाय वै नमः|| २५|| SP0150261: नमो गगनलिङ्गाय तेजोलिङ्गाय वै नमः| SP0150262: नमो वायूर्ध्वलिङ्गाय शब्दलिङ्गाय वै नमः|| २६|| SP0150271: नमो ऋक्स्तुतलिङ्गाय यजुर्लिङ्गाय वै नमः| SP0150272: नमस्ते ऽथर्वलिङ्गाय सामलिङ्गाय वै नमः|| २७|| SP0150281: नमो यज्ञाङ्गलिङ्गाय यज्ञलिङ्गाय वै नमः| SP0150282: नमस्ते ऽनन्तलिङ्गाय देवानुगतलिङ्गिने|| २८|| SP0150291: दिश नः परमं योगमपत्यं मत्समं तथा| SP0150292: ब्रह्म चैवाक्षयं देव शमं चैव परं विभो| SP0150293: अक्षयत्वं च वंशस्य धर्मे च मतिमक्षयाम्|| २९|| SP0150300: सनत्कुमार उवाच| SP0150301: एवं स भगवान्व्यास वसिष्ठेनामितात्मना| SP0150302: स्तूयमानस्तुतोषाथ तुष्टश्चेदं तमब्रवीत्|| ३०|| SP0150310: भगवानुवाच| SP0150311: तुष्टस्ते ऽहं ददान्येतत्तव सर्वं मनोगतम्| SP0150312: योगं च परमं सूक्ष्ममक्षयं सर्वकामिकम्|| ३१|| SP0150321: पौत्रं च त्वत्समं दिव्यं तपोयोगबलान्वितम्| SP0150322: ददानि ते ऋषिश्रेष्ठ प्रतिभास्यन्ति चैव ते|| ३२|| SP0150331: दमः शमस्तथा कीर्तिस्तुष्टिरक्रोध एव च| SP0150332: नित्यं तव भविष्यन्ति अमरत्वं च सर्वशः|| ३३|| SP0150341: अवध्यत्वमसह्यत्वमक्षयत्वं च सर्वदा| SP0150342: वंशस्य चाक्षतिर्विप्र धर्मे च रतिरव्यया| SP0150343: ब्रूहि चान्यानपि वरान्ददामि ऋषिसत्तम|| ३४|| SP0150350: वसिष्ठ उवाच| SP0150351: भगवन्विदितं सर्वं भविष्यं देवसत्तम| SP0150352: न स्याद्धि तत्तथा देव यथा वा मन्यसे प्रभो|| ३५|| SP0150360: देव उवाच| SP0150361: भविष्यं नान्यथा कुर्यादिति मे निश्चिता मतिः| SP0150362: अहं कर्ता भविष्यस्य कथं कुर्यात्तदन्यथा|| ३६|| SP0150371: तथा तन्नात्र संदेहो विहितं यद्यथा मया| SP0150372: तस्मात्ते ऽनुग्रहं कर्ता भूयः पुत्रस्तवाव्ययः|| ३७|| SP0150380: सनत्कुमार उवाच| SP0150381: एवमुक्त्वा ततो देवः कपर्दी नीललोहितः| SP0150382: पश्यतस्तस्य विप्रर्षेः क्षणादन्तरधीयत|| ३८|| SP0159999: इति स्कन्दपुराणे पञ्चदशमो ऽध्यायः||