Skandapurāṇa Adhyāya 16 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0160010: व्यास उवाच| SP0160011: वरान्स लब्ध्वा भगवान्वसिष्ठो ऽस्मत्पितामहः| SP0160012: कं पुत्रं जनयामास आत्मनः सदृशद्युतिम्|| १|| SP0160020: सनत्कुमार उवाच| SP0160021: तेनासौ वरदानेन देवदेवस्य शूलिनः| SP0160022: अरुन्धत्यामजनयत्तपोयोगबलान्वितम्| SP0160023: ब्रह्मिष्ठं शक्तिनामानं पुत्रं पुत्रशताग्रजम्|| २|| SP0160031: तस्य बाल्यात्प्रभृत्येव वासिष्ठस्य महात्मनः| SP0160032: परेण चेतसा भक्तिरभवद्गोवृषध्वजे|| ३|| SP0160041: स कदाचिदपत्यार्थमाराधयदुमापतिम्| SP0160042: तस्य तुष्टो महादेवो वरदो ऽस्मीत्यभाषत|| ४|| SP0160051: अथ दृष्ट्वा तमीशानमिदमाहानताननः| SP0160052: केन स्तोष्यामि ते देव यस्त्वं सर्वजगत्पतिः| SP0160053: सर्वान्धारयसे लोकानात्मना समयाद्विभो|| ५|| SP0160061: त्वमेव भोक्ता भोज्यं च कर्ता कार्यं तथा क्रिया| SP0160062: उत्पादकस्तथोत्पाद्य उत्पत्तिश्चैव सर्वशः|| ६|| SP0160071: आत्मानं पुत्रनामानं मम तुल्यं गुणैर्विभो| SP0160072: इच्छामि दत्तं देवेश एष मे दीयतां वरः|| ७|| SP0160080: सनत्कुमार उवाच| SP0160081: तमेवंवादिनं देवः प्रहस्य वदतां वरः| SP0160082: उवाच वचसा व्यास दिशः सर्वा विनादयन्|| ८|| SP0160091: त्वयाहं याचितः शक्ते स च ते संभविष्यति| SP0160092: त्वत्समः सर्ववेदज्ञस्त्वदीयो मुनिपुंगव|| ९|| SP0160101: बीजात्मा च तथोद्भूतः स्वयमेवाङ्कुरात्मना| SP0160102: बीजात्मना न भवति परिणामान्तरं गतः|| १०|| SP0160111: एवं स आत्मनात्मा वः संभूतो ऽपत्यसंज्ञितः| SP0160112: स्वेनात्मना न भविता परिणामान्तरं गतः|| ११|| SP0160120: सनत्कुमार उवाच| SP0160121: एवमुक्त्वा तु तं देवः प्रहस्य च निरीक्ष्य च| SP0160122: जगाम सहसा योगी अदृश्यत्वमतिद्युतिः|| १२|| SP0160131: तस्मिन्गते महादेवे शक्तिस्तव पितामहः| SP0160132: वचस्तत्परिनिश्चिन्त्य एवमेवेत्यमन्यत|| १३|| SP0160141: अथ काले ऽतिमहति समतीते शुभव्रते| SP0160142: तपसा भावितश्चापि महताग्निसमप्रभः| SP0160143: अदृश्यन्त्यां महाप्रज्ञ आदधे गर्भमुत्तमम्|| १४|| SP0160151: तस्यामापन्नसत्त्वायां राजा कल्माषपादृषिम्| SP0160152: भक्षयामास संरब्धो रक्षसा हृतचेतनः|| १५|| SP0169999: इति स्कन्दपुराणे षोडशो ऽध्यायः||