Skandapurāṇa Adhyāya 21 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0210010: सनत्कुमार उवाच| SP0210011: निर्गतो ऽथ ततो नन्दी जगाम सरितां वराम्| SP0210012: भुवनामिति विख्यातां सर्वलोकसुखावहाम्|| १|| SP0210021: तां प्रविश्य ततो धीमानेकाग्रो ह्रदमास्थितः| SP0210022: स जजाप तदा रुद्रान्मृत्योर्भीतः समाहितः|| २|| SP0210031: जपता तेन तत्रैव तत्परेण तदाशिषा| SP0210032: कोटिरेका यदा जप्ता तदा देवस्तुतोष ह|| ३|| SP0210041: तमागत्याह भगवाञ्छर्व उग्रः कपर्दिमान्| SP0210042: नन्दिंस्तुष्टो ऽस्मि भद्रं ते वरं वृणु यथेप्सितम्|| ४|| SP0210051: उवाच प्रणतो भूत्वा प्रणतार्तिहरं हरम्| SP0210052: द्वितीयां जप्तुमिच्छामि कोटिं भगवतां विभो| SP0210053: एवमस्त्विति देवो ऽपि प्रोच्यागच्छद्यथागतम्|| ५|| SP0210060: सनत्कुमार उवाच| SP0210061: सो ऽवतीर्य ततो भूयः प्रयतात्मा तथैव ह| SP0210062: जजाप कोटिमन्यां तु रुद्रमेवानुचिन्तयन्|| ६|| SP0210071: द्वितीयायां ततः कोट्यां सम्पूर्णायां वृषध्वजः| SP0210072: अभ्याजगाम तं चैव वरदो ऽस्मीत्यभाषत|| ७|| SP0210081: स प्राह भगवन्कोटिं तृतीयामपि कालहन्| SP0210082: जप्तुमिच्छामि देवेश त्वत्प्रसादादहं विभो|| ८|| SP0210091: एवमस्त्विति भूयो ऽपि भगवान्प्रत्युवाच ह| SP0210092: उक्त्वा जगाम स्वं वेश्म देव्या सह महाद्युतिः|| ९|| SP0210101: ततस्तृतीयां रुद्राणां कोटिमन्यां जजाप ह| SP0210102: युगान्तादित्यसंकाशस्ततः समभवद्द्विजः|| १०|| SP0210111: तस्य कोटीत्रये व्यास समाप्ते ज्वलनत्विषः| SP0210112: सोमः सह गणैर्देवस्तं देशमुपचक्रमे|| ११|| SP0210121: स तं करेण संगृह्य उद्धृत्य सलिलाच्च ह| SP0210122: संमृजानो ऽग्रहस्तेन नन्दिनं कालहाब्रवीत्|| १२|| SP0210130: देव उवाच| SP0210131: शैलादे वरदो ऽहं ते तपसानेन तोषितः| SP0210132: साधु जप्तं त्वया धीमन्ब्रूहि यत्ते मनोगतम्|| १३|| SP0210140: शैलादिरुवाच| SP0210141: जपेयं कोटिमन्यां तु भूयो ऽपि तव तेजसा| SP0210142: वरमेतं वृणे देव यदि तुष्टो ऽसि मे विभो|| १४|| SP0210150: भगवानुवाच| SP0210151: किं ते जप्तेन भूयो ऽपि तुष्टो ऽस्मि तव सर्वथा| SP0210152: यद्यत्त्वं वृणुषे कामं सर्वं तत्प्रददानि ते|| १५|| SP0210161: ब्रह्मत्वमथ विष्णुत्वमिन्द्रत्वमथ वायुताम्| SP0210162: आदित्यो भव रुद्रो वा ब्रूहि किं वा ददानि ते|| १६|| SP0210170: सनत्कुमार उवाच| SP0210171: स एवमुक्तो देवेन शिरसा पादयोर्नतः| SP0210172: तुष्टाव पुरकामाङ्गक्रतुपर्वतनाशनम्|| १७|| SP0210180: नन्द्युवाच| SP0210181: नमो देवातिदेवाय महादेवाय वै नमः| SP0210182: नमः कामाङ्गनाशाय नीलकण्ठाय वै नमः|| १८|| SP0210191: नमस्तुषितनाशाय त्रैलोक्यदहनाय च| SP0210192: नमः कालोग्रदण्डाय उग्रदण्डाय वै नमः|| १९|| SP0210201: नमो नीलशिखण्डाय सहस्रशिरसे नमः| SP0210202: सहस्रपाणये चैव सहस्रचरणाय च|| २०|| SP0210211: सर्वतःपाणिपादाय सर्वतोक्षिमुखाय च| SP0210212: सर्वतःश्रुतये चैव सर्वमावृत्य तिष्ठते|| २१|| SP0210221: नमस्ते रुक्मवर्णाय तथैवातीन्द्रियाय च| SP0210222: नमः कनकलिङ्गाय सर्वलिङ्गाय वै नमः|| २२|| SP0210231: नमश्चन्द्रार्कवर्णाय योगेशायाजिताय च| SP0210232: पिनाकपाणये चैव शूलमुद्गरपाणये|| २३|| SP0210241: गदिने खड्गिने चैव परश्वधधराय च| SP0210242: रथिने वर्मिणे चैव महेष्वासाय वै नमः|| २४|| SP0210251: नमस्त्रिशूलहस्ताय उग्रदण्डधराय च| SP0210252: नमो गणाधिपतये रुद्राणां पतये नमः|| २५|| SP0210261: नमः सहस्रनेत्राय शतनेत्राय वै नमः| SP0210262: आदित्यानां च पतये वसूनां पतये नमः|| २६|| SP0210271: नमः पृथिव्याः पतये आकाशपतये नमः| SP0210272: नमः स्वर्लोकपतये उमायाः पतये नमः|| २७|| SP0210281: नमो योगाधिपतये सर्वयोगप्रदाय च| SP0210282: ध्यानिने ध्यायमानाय ध्यानिभिः संस्तुताय च|| २८|| SP0210291: मृत्यवे कालदण्डाय यमाय च महात्मने| SP0210292: देवाधिपतये चैव दिव्यसंहननाय च|| २९|| SP0210301: यज्ञाय वसुदानाय स्वर्गायाजन्मदाय च| SP0210302: सवित्रे सर्वदेवानां धर्मायानेकरूपिणे|| ३०|| SP0210311: अमृताय वरेण्याय सर्वदेवस्तुताय च| SP0210312: ब्रह्मणश्च शिरोहर्त्रे यज्ञस्य च महात्मनः|| ३१|| SP0210321: त्रिपुरघ्नाय चोग्राय सर्वाशुभहराय च| SP0210322: उमादेहार्धरूपाय ललाटनयनाय च|| ३२|| SP0210331: महिषान्धकभेत्ताय स्रष्ट्रे वै परमेष्ठिने| SP0210332: ब्रह्मणो गुरवे चैव ब्रह्मणो जनकाय च|| ३३|| SP0210341: कुमारगुरवे चैव कुमारवरदाय च| SP0210342: हलिने मुषलघ्नाय महाहासाय वै नमः|| ३४|| SP0210351: मृत्युपाशोग्रहस्ताय तक्षकब्रह्मसूत्रिणे| SP0210352: सविद्युद्घनवाहाय तथैव वृषयायिने|| ३५|| SP0210361: हिमवद्विन्ध्यवासाय मेरुपर्वतवासिने| SP0210362: कैलासवासिने चैव धनेश्वरसखाय च|| ३६|| SP0210371: विष्णोर्देहार्धदत्ताय तस्यैव वरदाय च| SP0210372: सर्वभूतासमज्ञाय सर्वभूतानुकम्पिने|| ३७|| SP0210381: अन्तर्भूताधिभूताय प्राणिनां जीवदाय च| SP0210382: मनसे मन्यमानाय अतिमानाय चैव हि|| ३८|| SP0210391: बुध्यमानाय बुद्धाय द्रष्ट्रे वै चक्षुषे नमः| SP0210392: नमस्ते स्पर्शयित्रे च तथैव स्पर्शनाय च|| ३९|| SP0210401: नमस्ते रसयित्रे च तथैव रसनाय च| SP0210402: नमो घ्राणाय घ्रात्रे च श्रोत्रे श्रोत्राय चैव हि| SP0210403: हस्तिने चैव हस्ताय तथा पादाय पादिने|| ४०|| SP0210411: नमो ऽस्त्वानन्दकर्त्रे च आनन्दाय च वै नमः| SP0210412: वाचे ऽथ वाग्मिने चैव तन्मात्राय महात्मने|| ४१|| SP0210421: सूक्ष्माय चैव स्थूलाय सत्त्वाय रजसे नमः| SP0210422: नमश्च तमसे नित्यं क्षेत्रज्ञायाजिताय च|| ४२|| SP0210431: विष्णवे लोकतन्त्राय प्रजानां पतये नमः| SP0210432: मनवे सप्तऋषये तप्यमानाय तापिने|| ४३|| SP0210441: ब्रह्मण्यायाथ शुद्धाय तथा दुर्वाससे नमः| SP0210442: शिल्पिने शिल्पनाथाय विदुषे विश्वकर्मणे|| ४४|| SP0210451: अत्रये भृगवे चैव तथैवाङ्गिरसे नमः| SP0210452: पुलहाय पुलस्त्याय क्रतुदक्षानलाय च|| ४५|| SP0210461: धर्माय रुचये चैव वसिष्ठाय नमो ऽस्तु ते| SP0210462: भूताय भूतनाथाय कुष्माण्डपतये नमः|| ४६|| SP0210471: तिष्ठते द्रवते चैव गायते नृत्यते ऽपि च| SP0210472: अवश्यायाप्यवध्याय अजरायामराय च|| ४७|| SP0210481: अक्षयायाव्ययायैव तथाप्रतिहताय च| SP0210482: अनावेश्याय सर्वेषां दृश्यायादृश्यरूपिणे|| ४८|| SP0210491: सूक्ष्मेभ्यश्चापि सूक्ष्माय सर्वगाय महात्मने| SP0210492: नमस्ते भगवंस्त्र्यक्ष नमस्ते भगवञ्छिव| SP0210493: नमस्ते सर्वलोकेश नमस्ते लोकभावन|| ४९|| SP0210501: न मे देवाधिपत्येन ब्रह्मत्वेनाथवा पुनः| SP0210502: न विष्णुत्वेन देवेश नापीन्द्रत्वेन भूतप| SP0210503: इच्छाम्यहं तवेशान गणत्वं नित्यमव्ययम्|| ५०|| SP0210511: नित्यं त्वां सगणं साम्बं प्रसन्नं सपरिच्छदम्| SP0210512: द्रष्टुमिच्छामि देवेश एष मे दीयतां वरः|| ५१|| SP0210521: त्वं नो गतिः पुरा देव त्वं चैवार्तायनं प्रभुः| SP0210522: शरणं च त्वमेवाथ नान्यं पश्यामि कर्हिचित्|| ५२|| SP0210531: त्वया त्यक्तस्य चैवाशु विनाशो नात्र संशयः| SP0210532: अन्यां गतिं न पश्यामि यस्या आत्यन्तिकं शुभम्|| ५३|| SP0210541: अनुरक्तं च भक्तं च त्वत्परं त्वदपाश्रयम्| SP0210542: प्रतीच्छ मां सदा देव एष मे दीयतां वरः|| ५४|| SP0210550: सनत्कुमार उवाच| SP0210551: य इमं प्रातरुत्थाय पठेदविमना नरः| SP0210552: स देहभेदमासाद्य नन्दीश्वरसमो भवेत्|| ५५|| SP0210561: यश्चेमं शृणुयान्नित्यं श्रावयेद्वा द्विजातिषु| SP0210562: सो ऽश्वमेधफलं प्राप्य रुद्रलोके महीयते|| ५६|| SP0210571: श्रुत्वा सकृदपि ह्येतं स्तवं पापप्रणाशनम्| SP0210572: यत्र तत्र मृतो व्यास न दुर्गतिमवाप्नुयात्|| ५७|| SP0210581: यो ऽधीत्य नित्यं स्तवमेतमग्र्यं देवं सदाभ्यर्चयते यतात्मा| SP0210582: किं तस्य यज्ञैर्विविधैश्च दानैस्तीर्थैः सुतप्तैश्च तथा तपोभिः|| ५८|| SP0219999: इति स्कन्दपुराण एकविंशतिमो ऽध्यायः||