Skandapurāṇa Adhyāya 54 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Yokochi, Yuko, ed. The Skandapurāṇa. Vol.III. Adhyāyas 34.1-61, 53-69. The Vindhyavāsinī Cycle. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis. Leiden/Groningen: Brill & Egbert Forsten, 2013. SP0540010: सनत्कुमार उवाच| SP0540011: ततस्तेन विमानेन सर्वसृक्स चतुर्मुखः| SP0540012: जगाम मन्दरं धीमान्विचित्रोपलकन्दरम्|| १|| SP0540021: स तमासाद्य विस्तीर्णमनौपम्यमतिप्रभम्| SP0540022: दूराद्दृष्टिसुखं दृष्ट्वा सभास्थानिदमब्रवीत्|| २|| SP0540031: इदं रुद्रगृहं शुभ्रमदृश्यं सुकृतामपि| SP0540032: देवानामपि पश्यध्वं भास्कराकारवर्चसम्|| ३|| SP0540041: इदं प्रविश्य देवानां यज्ञश्रीर्नापसर्पति| SP0540042: जयश्च नित्यं युद्धेषु धर्मश्च सुमहानपि|| ४|| SP0540051: एतत्सृष्टं स्वयं तेन मनसानुपमद्युति| SP0540052: न ह्यस्य सदृशं किंचिदण्डे ऽस्मिन्विद्यते गृहम्|| ५|| SP0540061: इदं प्रविश्य धर्मात्मा दुःखं भूयो न विन्दते| SP0540062: न चापि जन्म प्राप्नोति नित्यमैश्वर्यगो हि सः|| ६|| SP0540071: अनिर्देश्यमिदं योगाद्योगिनामपि नित्यशः| SP0540072: अन्यस्तु कुत एवेदं वर्णयीत महानपि|| ७|| SP0540081: एतदस्मद्विमानस्य वायुनाभ्याहतं रुषा| SP0540082: वर्धते गिरिणा सार्धं विन्ध्यस्य शिखरं यथा|| ८|| SP0540091: एतदस्मद्विमानस्य मार्गमावृत्य विष्ठितम्| SP0540092: ऊर्ध्वं तिर्यगधस्ताच्च देवदेवस्य तेजसा|| ९|| SP0540101: एतदन्धं तमः कृत्वा मेघो ऽसौ जीवनः स्वयम्| SP0540102: वज्रोद्यतकरः स्रग्मी प्रत्युद्यात्यभिनादयन्|| १०|| SP0540110: सनत्कुमार उवाच| SP0540111: ततः स भगवान्देवो ब्रह्मा लोकपितामहः| SP0540112: विष्टभ्य तं विमानाग्र्यमवतस्थे कृताञ्जलिः|| ११|| SP0540121: तुष्टाव च तदा देवं शर्वमुग्रं कपर्दिनम्| SP0540122: ते चैव ऋषयः सर्वे विमानस्थाः सुसंयताः|| १२|| SP0540131: ततः स मेघः स्वं स्थानमगमद्वृष्टिसर्जनः| SP0540132: दिशश्च विमलाः सर्वाः प्रकाशश्चाभवद्भृशम्|| १३|| SP0540141: तं जपन्तं विदित्वा च भगवान्गोवृषध्वजः| SP0540142: नन्दिनं द्वारदेशस्थमिदमाह सुरेश्वरः|| १४|| SP0540151: एष ब्रह्मा विमानेन मामिह द्रष्टुमागतः| SP0540152: ब्रूहि येनागतो ऽसीह कार्येण विदितो ऽसि मे| SP0540153: कुरु तद्गच्छ शीघ्रं त्वं कालस्तस्यायमागतः|| १५|| SP0540160: सनत्कुमार उवाच| SP0540161: स एवमुक्तो रुद्रेण नन्दी प्रमथनायकः| SP0540162: द्वाःस्थ-म्-एव विमानस्थं ब्रह्माणमिदमब्रवीत्|| १६|| SP0540170: नन्द्युवाच| SP0540171: यूयं ज्ञाता भगवता येन कार्येण चागताः| SP0540172: कुरुध्वं किल तच्छीघ्रं कालो ऽयं तस्य वर्तते|| १७|| SP0540181: ततः स कृत्वा मनसा नमस्कारं हि शम्भवे| SP0540182: प्रदक्षिणमुपावृत्य मन्दरं प्रजगाम ह|| १८|| SP0540191: स मन्दरगिरिं सर्वं परिहृत्य महामनाः| SP0540192: शाकद्वीपस्य मध्येन जम्बूद्वीपमथागमत्|| १९|| SP0540201: स दृश्यमानो देवैश्च मुनिभिश्च यतव्रतैः| SP0540202: हिमवन्तं गिरिश्रेष्ठमुपागम्येदमब्रवीत्|| २०|| SP0540211: एतद्धिमवतः शृङ्गमुच्छ्रितं कान्तिमत्स्थितम्| SP0540212: युगान्तादित्यसंकाशं दूरात्समभिलक्ष्यते|| २१|| SP0540221: अत्र सा जगतो धात्री धात्री पुत्रमिवौरसम्| SP0540222: पालयन्ती जगत्सर्वं तपस्तप्यति शैलजा|| २२|| SP0540231: अहो नु शिखरं पुण्यं भाग्यवच्चापि सर्वथा| SP0540232: यदेनं गिरिपुत्र्यर्थे वरैर्योक्ष्यति कामहा|| २३|| SP0540241: पश्यध्वं तपसो वीर्यं देव्याः सुचरितस्य वै| SP0540242: यदेतच्छिखरं दृष्ट्वा न पश्याम पुनर्यमम्|| २४|| SP0540251: स एवं कथयन्नेव विमानेन चतुर्मुखः| SP0540252: ऋषिभिः सहितः सर्वैः शिखरद्वारमागतः|| २५|| SP0540261: तत्रैनं रुद्रसचिवा आयुधोद्यतपाणयः| SP0540262: भर्त्सयन्तो ऽभ्यवर्तन्त तिष्ठ तिष्ठेतिवादिनः|| २६|| SP0540271: तान्ब्रह्मा श्लक्ष्णया वाचा सान्त्वपूर्वमुवाच ह| SP0540272: प्रशंसमानस्तान्सर्वान्प्राञ्जलिर्युक्तमानसः|| २७|| SP0540280: ब्रह्मोवाच| SP0540281: यूयं सर्वे महात्मान ऐश्वर्येण समन्विताः| SP0540282: अक्षया ह्यमराश्चैव तथाप्रतिहताश्च ह|| २८|| SP0540291: महायोगबलोपेता अजय्या युधि केनचित्| SP0540292: को युष्मानभिवर्तेत शक्रो ऽपि प्रवरेश्वराः|| २९|| SP0540301: देवदेवाज्ञया सो ऽहमायातो मन्दरादिह| SP0540302: देव्या वरप्रदानार्थमनुज्ञा क्रियतां मम|| ३०|| SP0540310: गणेश्वरा ऊचुः| SP0540311: देव्या दाता स्वयं देवो वरानिष्टान्महामनाः| SP0540312: तानेव देवी त्वन्यस्मान्मनसापि न चिन्तयेत्|| ३१|| SP0540321: शक्तो देवो ऽनुग्रहीतुं जगत्सर्वं महेश्वरः| SP0540322: त्वामप्यसौ ऽनुगृह्णाति किमु देवीं जगत्पतिः|| ३२|| SP0540330: ब्रह्मोवाच| SP0540331: अशक्तो न महादेवो वरं दातुं महामनाः| SP0540332: य एवं चिन्तयेद्देवं न भवेत्स कथंचन|| ३३|| SP0540341: न देवी भगवत्पार्श्वादिच्छते किल पार्वती| SP0540342: वरानिष्टांस्ततो देवो मामिह प्रेषयच्छिवः|| ३४|| SP0540351: अथ तं युक्तमनसो युक्तं प्रत्यक्षमीश्वराः| SP0540352: महेश्वरमपश्यन्त कृतानुज्ञं च लोकपम्|| ३५|| SP0540361: नियुक्ताश्च पुनः सर्वे ब्रह्माणं लोककारणम्| SP0540362: ऊचुर्गणेश्वराः सर्वे विदितार्था महामुने|| ३६|| SP0540371: प्रेषितो देवदेवेन ज्ञातो ऽस्माभिः पितामह| SP0540372: त्वं विशस्वाधुना देव पार्वत्या वरदित्सया|| ३७|| SP0540381: अवतीर्य विमानात्तु ततः शीघ्रं पितामहः| SP0540382: निलिल्ये शिखरे तस्मिन्नानाधातुविचित्रिते|| ३८|| SP0540391: अथ सोपलधातुनिर्झरो गिरिराजो ऽतिमहाशिलोच्चयः| SP0540392: विनिसृष्टदिवाकरामलः स गिरिर्दिव्य इवोदयाचलः|| ३९|| SP0549999: इति स्कन्दपुराणे चतुष्पञ्चाशो ऽध्यायः||