Skandapurāṇa Adhyāya 60 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Yokochi, Yuko, ed. The Skandapurāṇa. Vol.III. Adhyāyas 34.1-61, 53-69. The Vindhyavāsinī Cycle. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis. Leiden/Groningen: Brill & Egbert Forsten, 2013. SP0600011: अथासौ ब्रह्मणः पुत्रं व्यासः प्राह कृताञ्जलिः| SP0600012: किमर्थं कौशिकी विन्ध्यं देव्या सम्प्रेषिता तदा|| १|| SP0600021: एवमुक्तस्तदा धीमान्व्यासेन ब्रह्मणः सुतः| SP0600022: यथावृत्तं पुरा सर्वमाख्यातुमुपचक्रमे|| २|| SP0600031: आरिराधयिषुर्देवीं विन्ध्यस्तेपे पुरा तपः| SP0600032: ततस्तुष्टाब्रवीद्विन्ध्यं पार्वती वरदास्मि ते|| ३|| SP0600041: मयि वासो ऽस्तु ते नित्यमेवमादित्यरोधनः| SP0600042: वव्रे गिरीन्द्रतनयां प्राह सा च तथास्त्विति|| ४|| SP0600051: स्वतनुं सा द्विधाभूतामग्नेर्दीप्तां शिखामिव| SP0600052: दाहाय दानवेन्द्राणां प्राहिणोत्कौशिकीमतः|| ५|| SP0600061: अथ तं ब्रह्मणः सूनुमुवाच मुनिसत्तमः| SP0600062: गिरिर्विन्ध्यो महाप्रज्ञ कथमादित्यरोधनः|| ६|| SP0600071: सनत्कुमारः प्रोवाच पृष्टो व्यासेन धीमता| SP0600072: शृणु यस्मादभूद्विन्ध्यो गिरिरादित्यरोधनः|| ७|| SP0600081: पुरा विन्ध्यो ऽब्रवीत्सूर्यं कस्मात्त्वं न करोषि माम्| SP0600082: प्रदक्षिणं यथा मेरुं का ते ऽवज्ञा मयि प्रभो|| ८|| SP0600091: प्रत्याख्यातः स सूर्येण विन्ध्यो गिरिरवर्धत| SP0600092: रुद्ध्वा तस्य स्थितो मार्गं तस्मादादित्यरोधनः|| ९|| SP0600101: नष्टालोके ततो लोके देवाः संविग्नचेतसः| SP0600102: अगस्त्यमुपसंगम्य वाक्यमूचुः समाहिताः|| १०|| SP0600111: सवितुर्मार्गमावृत्य गिरिर्विन्ध्यो व्यवस्थितः| SP0600112: तं वारय महाप्राज्ञ गतिर्नः सर्वदा भवान्|| ११|| SP0600121: तमगस्त्यो गिरिं गत्वा प्रोवाचेत्थं महातपाः| SP0600122: यास्यामि दक्षिणामाशां पन्थानं देहि पर्वत|| १२|| SP0600131: यावत्प्रतिनिवर्तेयं तावच्च स्थातुमर्हसि| SP0600132: ततः प्रभृति चैवेह नाभूदागमनं मुनेः|| १३|| SP0600141: अथ पप्रच्छ तं व्यासः पितामहसुतं प्रभुम्| SP0600142: कौशिकी प्रहिता विन्ध्यं दानवानां विनाशने|| १४|| SP0600151: के ते कस्य किमर्थं वा कौशिक्या दानवा हताः| SP0600152: एतत्सर्वं समासेन प्रश्नं मे वक्तुमर्हसि|| १५|| SP0600161: पितामहसुतो धीमान्व्यासेनैवं प्रचोदितः| SP0600162: प्रश्नमेतं समासेन व्याख्यातुमुपचक्रमे|| १६|| SP0600171: देवासुरे पुरातीते संयुगे परमाद्भुते| SP0600172: सुन्दो निसुन्दश्च सुतौ निसुम्भस्य बभूवतुः|| १७|| SP0600181: देवान्प्रति सुसंक्रुद्धौ गर्जन्तौ गोवृषाविव|| १८|| SP0600191: सिंहाविव महासत्त्वौ हृतदंष्ट्रानखायुधौ| SP0600192: श्वसन्तौ सविषावुग्रौ भग्नदंष्ट्राविवोरगौ|| १९|| SP0600201: अशक्तौ तौ सुरैर्योद्धुं हतपक्षौ महासुरौ| SP0600202: सुपर्णाविव संक्रुद्धौ छिन्नपक्षौ महाबलौ|| २०|| SP0600211: तपस्याधाय तौ चेतो गोकर्णं प्रति जग्मतुः| SP0600212: आरिराधयिषू देवं ब्रह्माणममितौजसौ|| २१|| SP0600221: अथोवाच ततो व्यासो गोकर्णं कथयस्व मे| SP0600222: कस्मिन्देशे किमर्थं वा केन वोत्पादितं पुरा|| २२|| SP0600231: प्रोवाच ब्रह्मणः सूनुर्व्यासेनैवं प्रचोदितः| SP0600232: शृणु वत्स समासेन पुण्यं गोकर्णसम्भवम्|| २३|| SP0600241: हते त्रिशिरसि त्वष्टा पुत्रे ज्यायसि वज्रिणा| SP0600242: वृत्रं नाम पुनः पुत्रमसृजत्तपसां निधिः|| २४|| SP0600251: प्रलम्बबाहुं वृत्तास्यं पीनविस्तीर्णवक्षसम्| SP0600252: सुश्लिष्टजानुं सुहनुं जलदध्वाननिस्वनम्|| २५|| SP0600261: सुक्षिप्तपार्श्वं सुकटिं दीर्घरक्तान्तलोचनम्| SP0600262: समरे सर्वदेवानां जेतारमपराजितम्|| २६|| SP0600271: स निर्जित्यामरान्सर्वाञ्जग्रासेन्द्रं महाद्युतिः| SP0600272: ततो महर्षिभिः सृष्टा जृम्भिका तं समाविशत्|| २७|| SP0600281: तस्याथ जृम्भमाणस्य निर्जगाम शतक्रतुः| SP0600282: वदनादाशु संक्षिप्य स्वां तनुं योगमायया|| २८|| SP0600291: तस्य योगबलं दृष्ट्वा वीर्यं शौर्यं च संयुगे| SP0600292: ततो भीताः सुराः सर्वे ब्रह्माणं शरणं ययुः|| २९|| SP0600301: तान्दृष्ट्वा स तदा भीतानमरानमरद्विषः| SP0600302: प्रोवाचासौ प्रजेशानः पद्मयोनिः पितामहः|| ३०|| SP0600311: पराजितान्वो जानामि वृत्रेण रणमूर्धनि| SP0600312: उपायं तं न पश्यामि येनासौ जीयते युधि|| ३१|| SP0600321: यास्याम सहिताः सर्वे देवं द्रष्टुमुमापतिम्| SP0600322: विश्वेश्वरं विधातारं वरदं भक्तवत्सलम्|| ३२|| SP0600331: स नः प्रणामैर्भक्त्या च स्तुत्या चाराधितः प्रभुः| SP0600332: महादेवो महायोगी शम्भुः शान्तिं विधास्यति|| ३३|| SP0600341: अथोत्तस्थुः सुराः सर्वे देवदेवं दिदृक्षवः| SP0600342: अपश्यन्तो विचेरुश्च महीं सोदधिपर्वताम्|| ३४|| SP0600351: अथ विष्णुर्महायोगी देवीं हिमवतः सुताम्| SP0600352: अपश्यत्पांसुदिग्धाङ्गीमासीनां बालरूपिणीम्|| ३५|| SP0600361: लेखामिव नवामिन्दोः प्रातःसूर्यप्रभामिव| SP0600362: हविषा हूयमानस्य तन्वीमग्नेः शिखामिव|| ३६|| SP0600371: विज्ञाय स तदा योगान्महायोगां सुरेश्वरीम्| SP0600372: ईश्वरो जगतो विष्णुर्जिष्णुस्तुष्टाव पार्वतीम्|| ३७|| SP0600381: त्वं स्रष्ट्री सर्वभूतानां संहर्त्री त्वं सुरेश्वरि| SP0600382: त्वमस्य जगतो धात्री नित्या प्रकृतिरव्यया|| ३८|| SP0600391: त्वं प्रभा शर्वरी ज्योत्स्ना कीर्तिस्तुष्टिरुमा धृतिः| SP0600392: बुद्धिर्मेधा स्मृतिः प्रज्ञा सन्ध्या कान्तिः स्तुतिर्मतिः|| ३९|| SP0600401: त्वमीशा देवि देवानां गणमाता गणाम्बिका| SP0600402: भद्रकाली महागौरी कौशिकी विन्ध्यवासिनी|| ४०|| SP0600411: दुर्गा ख्यातिर्महाविद्या गायत्री त्वं सरस्वती| SP0600412: स्वाहा स्वधा महामाया लक्ष्मी योगेश्वरेश्वरी|| ४१|| SP0600421: उल्का सती गिरेः पुत्री मैनेयी ब्रह्मचारिणी| SP0600422: तापसी रेवती षष्ठी वरा वरसहस्रदा|| ४२|| SP0600431: कुन्दकार्मुकसारङ्गकोकिलाशोकपल्लवैः| SP0600432: तुल्यासि दन्तभ्रूनेत्रस्वरपाणिभिरीश्वरि|| ४३|| SP0600441: प्रमत्तोत्फुल्लसंपूर्णान्नागोत्पलनिशाकरान्| SP0600442: विशिनक्षि सदा देवि गतिलोचनकान्तिभिः|| ४४|| SP0600451: शिरोभिर्माहिषैर्भ्रान्तरक्तपर्यन्तलोचनैः| SP0600452: नृभिः क्षितितलन्यस्तकरजानुभिरीज्यसे|| ४५|| SP0600461: मत्तान्यपुष्टाकलवल्गुभाषिता द्विरेफमालासितचारुमूर्धजा| SP0600462: प्रफुल्लपुष्पस्तवकोद्गतस्तनी विराजसे कल्पलतेव पुष्पिता|| ४६|| SP0600471: देवि देवीभिरनिशं भक्ताभिर्वन्द्यसे दिवि| SP0600472: ईज्यसे मुनिभिः शश्वद्गिरिजे गिरिमूर्धसु|| ४७|| SP0600481: अर्च्यसे सिद्धगन्धर्वैर्गन्धपुष्पोत्करैः सदा| SP0600482: सदागतिपथप्राप्ता प्राप्त्या च स्तूयसे ऽनघे|| ४८|| SP0600491: भासि सिंहं समारूढा चलत्पिङ्गलकेसरम्| SP0600492: दीप्ता प्रभेव सावित्री मेरोर्मूर्धानमास्थिता|| ४९|| SP0600501: जिघांसती रणे दैत्याञ्छरौघैर्भास्यजिह्मगैः| SP0600502: रवेर्मूर्तिस्तमांसीव विकिरन्ती गभस्तिभिः|| ५०|| SP0600511: परशुं शितमुद्गृह्य देवदानवसंयुगे| SP0600512: भ्राजसे देवि संक्रुद्धा पाटयन्तीव रोदसी|| ५१|| SP0600521: अथ सा शैशवं हित्वा तनुमन्यां समाददे| SP0600522: एकीकृतामिवाकाशे संहतिं सर्वतेजसाम्|| ५२|| SP0600531: दीप्तामपि सुखालोकां शान्तामपि सविभ्रमाम्| SP0600532: बालामपि जगद्धात्रीं तन्वीमपि सुसंहताम्|| ५३|| SP0600541: उवाचेदं च सुप्रीता वरदास्मि तव प्रभो| SP0600542: एवमुक्तस्तया सो ऽथ प्रोवाचाम्भोदनिस्वनः|| ५४|| SP0600551: शरण्ये देवि भक्तानां शरणागतवत्सले| SP0600552: भवानि भव मे नित्यं सुप्रसन्ना महेश्वरि|| ५५|| SP0600561: कथयस्व च देवेशं शाश्वतं स्थाणुमव्ययम्| SP0600562: विश्वात्मानं महादेवं सर्वयोगेश्वरेश्वरम्|| ५६|| SP0600571: तथास्त्विति प्रतिज्ञाय कथयामास शंकरम्| SP0600572: मृगयूथस्य मध्यस्थं क्रीडन्तं मृगरूपिणम्|| ५७|| SP0600581: एकशृङ्गं महाग्रीवमेकाक्षममितौजसम्| SP0600582: एकपादं सुसंश्लिष्टमापाण्डुकपिलोदरम्|| ५८|| SP0600591: अथ विष्णुर्द्रुतं गत्वा शृङ्गे जग्राह तं प्रभुम्| SP0600592: तस्मिन्नेव ततो ब्रह्मा जग्राहेन्द्रश्च वीर्यवान्|| ५९|| SP0600601: त्रिधा तदभवच्छृङ्गं चलिते दीप्ततेजसि| SP0600602: त्रयाणां सुरमुख्यानां पृथक्पाणिषु संस्थितम्|| ६०|| SP0600611: अथादृश्यस्तदा शर्वस्तानुवाच सुरोत्तमान्| SP0600612: यदर्थमागता यूयं तद्ब्रूत सुरसत्तमाः|| ६१|| SP0600621: अथोवाच ततो ब्रह्मा परमेशं वृषध्वजम्| SP0600622: राज्यं पुनरवाप्नोतु हत्वा वृत्रं पुरंदरः|| ६२|| SP0600631: ततस्तानमरांस्तत्र वृषकेतुः समागतान्| SP0600632: स्वरेण वारिदध्वानगम्भीरेणाब्रवीत्तदा|| ६३|| SP0600641: वैष्णवं परमं तेजः फेनमावेक्ष्यते सुराः| SP0600642: शिरश्छेत्स्यति वृत्रस्य तदादाय शतक्रतुः|| ६४|| SP0600651: हृषीकेशो ऽथ तत्खण्डमनयत्स्वं निकेतनम्| SP0600652: न्यवेशयत तत्रैव वारिजोदरसंभवः|| ६५|| SP0600661: नीयमानं तृतीयं च खण्डमाखण्डलेन तु| SP0600662: रक्षसामधिपः श्रीमाञ्जग्राहाथ दशाननः|| ६६|| SP0600671: चकार सन्ध्यामुदधौ दक्षिणे न्यस्य तत्तदा| SP0600672: न विचालयितुं शक्तः सन्ध्यामास्थाय रावणः|| ६७|| SP0600681: तत्पुण्यं देवदेवस्य व्यास क्षेत्रं महाद्युतेः| SP0600682: गोकर्णमिति नामास्य चकार कमलासनः|| ६८|| SP0600691: तत्र गत्वा नरो भक्त्या प्रणिपत्य महेश्वरम्| SP0600692: अश्वमेधमवाप्नोति सर्वपापैः प्रमुच्यते|| ६९|| SP0600701: गोकर्णमुत्तरं व्यास स्थापितं पद्मयोनिना| SP0600702: उदन्वतः स्थितं तीरे स्वयमेव तु दक्षिणे|| ७०|| SP0600711: यः शृणोति नरो नित्यं पुण्यं गोकर्णसम्भवम्| SP0600712: सर्वपापविधूतात्मा स याति परमां गतिम्|| ७१|| SP0600721: अथ तौ दानवौ व्यास गोकर्णमभिजग्मतुः| SP0600722: तत्र चेरतुरत्युग्रं तपो ऽम्बुपवनाशनौ|| ७२|| SP0600731: कस्यचित्त्वथ कालस्य विदित्वोग्रं तयोस्तपः| SP0600732: आजगाम तयोः पार्श्वं ब्रह्मा सुरनमस्कृतः|| ७३|| SP0600741: अथ तौ विश्वधातारं चतुर्वक्त्रं पितामहम्| SP0600742: अपश्यतां महाबाहू ब्रह्माणं पुरतः स्थितम्|| ७४|| SP0600751: शुक्लाम्बरधरं दीप्तं शुक्लस्रगनुलेपनम्| SP0600752: एकीकृतमसम्प्रेक्ष्यं तेजो दिनकृतामिव|| ७५|| SP0600761: प्रीतो ऽस्मि युवयोः पुत्रावथोवाच पितामहः| SP0600762: अनेन तपसोग्रेण वरं ब्रूतमभीप्सितम्|| ७६|| SP0600771: अमरत्वं तु वव्राते तौ प्रणम्य पितामहम्| SP0600772: ब्रह्माहाथ विना देवानमरत्वं न विद्यते|| ७७|| SP0600781: अवश्यमेष्यो युवयोर्मृत्युरेकेन केनचित्| SP0600782: अथामरत्वं वव्राते परस्परवधं विना|| ७८|| SP0600791: एवमस्त्विति ताभ्यां तं वरं दत्त्वा पितामहः| SP0600792: हंसयुक्तेन यानेन जगाम स्वं निकेतनम्|| ७९|| SP0600801: असुरावपि तौ तस्मात्तपसोग्राद्विरेमतुः| SP0600802: आजग्मतुर्निकेतं स्वं वरं लब्ध्वा पितामहात्|| ८०|| SP0600811: वरदानं ततो ज्ञात्वा दैत्याः पातालवासिनः| SP0600812: आजग्मुर्दानवाश्चैव तयोः पार्श्वं मुदान्विताः|| ८१|| SP0600821: केशिर्मुरो मयः शम्भुः कार्तस्वरमहारवौ| SP0600822: इन्द्रशत्रुः कलिर्धुन्धुरिल्वलो नमुचिर्द्रुमः|| ८२|| SP0600831: वातापी दुन्दुभिर्मेघः प्रभुरन्ये च दानवाः| SP0600832: सर्वे कवचिनः शूरा गदापरिघपाणयः|| ८३|| SP0600841: ऊचुश्च शोकमग्नानामस्माकं शत्रुतापनौ| SP0600842: युवां प्लवाविवायातौ शोकसागरतारणौ|| ८४|| SP0600851: पुरे ऽप्रतिभये रम्ये कान्तां नाम ततः सभाम्| SP0600852: आजग्मुस्तुष्टमनसो दानवेन्द्राः समागताः|| ८५|| SP0600861: तस्यां प्रयस्ते विस्तीर्णे शातकौम्भे वरासने| SP0600862: आससाद महाबाहुः सुन्दो दानवसत्तमः|| ८६|| SP0600871: निसुन्दो ऽन्यत्ततो भेजे हेमरत्नमयं शुभम्| SP0600872: आससाद ततो धीमान्कार्तस्वरमये मयः|| ८७|| SP0600881: अन्ये च दानवा भेजुरासनानि तदा मुने| SP0600882: हेमरत्नविचित्राणि भास्वन्ति च महान्ति च|| ८८|| SP0600891: विरेजे सा सभा तत्र दानवेन्द्रैः समागतैः| SP0600892: सबलाकैस्तडित्वद्भिः प्रलये द्यौरिवाम्बुदैः|| ८९|| SP0600901: अथोन्नाम्य शिरो रत्नमरीचिपरिवेषवत्| SP0600902: सुन्दो वचनमाहेत्थमम्भोदरुचिरस्वनः|| ९०|| SP0600911: दानवेन्द्राः करिष्यामि सर्वेषामस्रुमार्जनम्| SP0600912: विजित्य देवतैः सार्धमिन्द्रमाहवमूर्धनि|| ९१|| SP0600921: प्रयाम दंशिताः सर्वे सज्जीभवत दानवाः| SP0600922: त्रैलोक्यविजयं कर्तुमुद्यतायुधपाणयः|| ९२|| SP0600931: तस्य तद्वचनं श्रुत्वा प्रभुः प्राहासुरेश्वरम्| SP0600932: यज्ञव्रततपोभिश्च नियमैश्चासुरद्विषः|| ९३|| SP0600941: आप्याययन्ति संरब्धाः शश्वद्वर्णाश्रमा भुवि| SP0600942: तानेव प्रथमं हत्वा ततो जेष्याम देवताः|| ९४|| SP0600951: तस्य तद्वचनं श्रुत्वा प्राहुर्दानवसत्तमाः| SP0600952: आयतिं प्रथमं हत्वा विजेष्यामस्ततो ऽमरान्|| ९५|| SP0600961: अथोवाच ततो धुन्धुर्मेघदुन्दुभिनिस्वनः| SP0600962: राजानुगामी लोको ऽयमपापो वध्यते कथम्|| ९६|| SP0600971: अस्मत्तो देवतै राज्यं लोकं हत्वा पुरा हृतम्| SP0600972: विक्रमेणैव निर्जित्य दैत्यराज्यं सुरैर्हृतम्|| ९७|| SP0600981: तथा तेभ्यो वयमपि प्रोच्छ्रितध्वजसंकुले| SP0600982: आनेष्यामो रणे जित्वा श्रियमाविग्नलोचनाम्|| ९८|| SP0600991: अपकारे सति समे स्वभावेन मनस्विनाम्| SP0600992: तेजो विजृम्भते दीप्तं शक्तिमत्स्वेव सर्वदा|| ९९|| SP0601001: अथ धुन्धोर्वचः श्रुत्वा मुरो मुरजनिस्वनः| SP0601002: उच्चैरुत्क्षिप्य मूर्धानं प्रोवाच प्रहसन्निव|| १००|| SP0601011: पुराभूवन्महात्मानो दानवेन्द्रा महाबलाः| SP0601012: हिरण्यकशिपुर्वृत्रः प्रह्लादो नमुचिर्बलिः|| १०१|| SP0601021: कोटिशो दानवाश्चान्ये महासत्त्वा महाबलाः| SP0601022: यैः कृता प्रसभं लक्ष्मीः स्ववक्षःस्थलवासिनी|| १०२|| SP0601031: अल्पावशेषैरधुना युष्माभिरसुरोत्तमाः| SP0601032: कथमानीयते राज्यं सुरान्निर्जित्य संयुगे|| १०३|| SP0601041: इष्टार्थसाधकेनाशु देशकालाविरोधिना| SP0601042: उपायेन परीप्सध्वं राज्यमन्येन केनचित्|| १०४|| SP0601051: एतच्छ्रुत्वा तदा वाक्यमंशुमाली महासुरः| SP0601052: प्रोवाच मधुरं श्लक्ष्णमर्थानुगमिदं वचः|| १०५|| SP0601061: सापराधा बलीयांसो बद्धवैराश्च दानवैः| SP0601062: जयिनः श्रीमदोन्मत्ताः साम देवेष्वनर्थकम्|| १०६|| SP0601071: सुरेषु मानसी सिद्धिर्विभुता भुवनत्रये| SP0601072: अणिमाद्यैर्गुणैर्योगस्तेषु दानमपार्थकम्|| १०७|| SP0601081: एकार्थानर्थिनः सर्वे संहताश्चासुरद्विषः| SP0601082: न ते भेदयितुं शक्या दानवैर्दानवोत्तमाः|| १०८|| SP0601091: मन्त्रप्रभावशक्तिभ्यामुत्साहेन परेण च| SP0601092: सम्पन्नाः सर्वथा देवा न युद्धं तैः सहेष्यते|| १०९|| SP0601101: युक्तो दानवमुख्यानां हीनसन्धिः सुरैः सह| SP0601102: स्थानवृद्धिपरीप्सूनां क्षीणानामधुना भृशम्|| ११०|| SP0601111: अथाह तेजसा स्वेन तेजांसि सुरविद्विषाम्| SP0601112: अभिभूय सदस्युच्चैरंशुमानंशुमानिव|| १११|| SP0601121: प्रणामपूर्वः क्रियते हीनसन्धिः कुराजभिः| SP0601122: न चक्रुर्दानवाः पूर्वं कुर्वते न च साम्प्रतम्|| ११२|| SP0601131: शिरांसि दानवेन्द्राणां कथं यास्यन्ति नम्रताम्| SP0601132: सुमेरोरिव शृङ्गाणि भानुमन्त्युच्छ्रितानि च|| ११३|| SP0601141: आदास्यामो ऽथवा राज्यं देवान्निर्जित्य संयुगे| SP0601142: प्राप्स्यामो वा गतिं पुण्यां निहताः समरे ऽमरैः|| ११४|| SP0601151: इत्थमंशुमतः श्रुत्वा वाक्यं वाक्यार्थकोविदः| SP0601152: गम्भीरमर्थवत्प्राह महिषो वदतां वरः|| ११५|| SP0601161: विदितं वः समस्तानां पूर्वजा भवतां यथा| SP0601162: हता दानवशार्दूला विक्रमैकरसाः सुरैः|| ११६|| SP0601171: तदलं दानवश्रेष्ठा वृत्त्या वो ऽग्निपतङ्गयोः| SP0601172: संधाय देवतैः सार्धं वृत्तिं कुर्मः स्वकर्मभिः|| ११७|| SP0601181: ज्यायोभिर्दानवा देवै रन्ध्रव्यसनवर्जितैः| SP0601182: विग्रहेण कथं सिद्धिमिच्छथ स्रस्तशक्तयः|| ११८|| SP0601191: गुणातिशययुक्तानां यानमभ्युच्चये सति| SP0601192: मन्त्रोत्साहप्रभावानामवाप्तौ देशकालयोः|| ११९|| SP0601201: अथ सम्भूययानेन मन्यध्वं सिद्धिमात्मनः| SP0601202: दंशिताः समरे यत्ताः समेता यक्षराक्षसैः|| १२०|| SP0601211: रक्षांसि हुतशेषाणि ज्वलने शक्तिसूनुना| SP0601212: श्रितानि देवतानेव भीतान्यबलवन्ति च|| १२१|| SP0601221: आयत्ताः सर्वदा यक्षाः कुबेरे ऽसुरसत्तमाः| SP0601222: स चापि सुरमुख्यानां कुरुते कार्यमुद्यतः|| १२२|| SP0601231: अन्यत्र दैत्यशत्रुभ्यो भुवनेषु बलीयसः| SP0601232: अभावादसुरश्रेष्ठा द्वैधीभावो न विद्यते|| १२३|| SP0601241: महिषे सदसि स्वस्थमित्युक्तवति दानवे| SP0601242: विस्पष्टमर्थवद्वाक्यं द्रुमः प्राह महासुरः|| १२४|| SP0601251: समरे ऽनिर्जिताः पूर्वमस्माभिरबलैः सह| SP0601252: जयिनः शक्तिसम्पन्नाः संधास्यन्ते कथं सुराः|| १२५|| SP0601261: संविधायाशु दुर्गाणि पर्वतान्युदकानि च| SP0601262: विजये सततं युक्ता विगृह्यासनमास्महे|| १२६|| SP0601271: नाशयन्तः सदा यज्ञान्व्रतानि नियमांस्तथा| SP0601272: वर्णाश्रमांश्च लोके ऽस्मिञ्जिघांसन्तः समन्ततः|| १२७|| SP0601281: ततो लोकविनाशेन विच्छिन्ने सत्क्रियापथे| SP0601282: विदित्वापचितान्देवानभियास्याम दंशिताः|| १२८|| SP0601291: अथ ते तस्य वचनं सर्व एवानुमेनिरे| SP0601292: आसन्नमृत्यवो ऽपथ्यमन्नं प्राणभृतो यथा|| १२९|| SP0601301: उत्तस्थुर्लोकनाशाय मतिं कृत्वामरद्विषः| SP0601302: उदन्वन्त इवोद्वेलाः प्रलये मारुताकुलाः|| १३०|| SP0601311: जलद इव सुनीलः पीनवृत्तोन्नताङ्गो SP0601312: हिमकरकरशुभ्रां हारयष्टिं दधानः| SP0601313: उदपतदथ सुन्दः स्वासनात्स्वात्तदानीं SP0601314: जलधिरिव विघूर्णन्फेनमाली युगान्ते|| १३१|| SP0601321: तदनु तदनुजो ऽम्बुवाहनीलः परिघभुजः पृथुरक्तदीर्घनेत्रः| SP0601322: अजहदविमनाः स्वमासनान्तं प्रतिभयकृद्द्विषतां तदा निसुन्दः|| १३२|| SP0609999: इति स्कन्दपुराणे षष्टितमो ऽध्यायः||